मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

धार्मिक असहिष्णुता-गांधी,ओबामा और भारत

                                                    पिछले महीने भारत के अपने शानदार दौरे के अंतिम चरण में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जिस तरह से भारत को एक अनचाही सलाह दे दी थी कि धार्मिक रूप से सहिष्णु भारत बहुत आगे तक जा सकता है उसके बाद देश विदेश के मीडिया में इस बात की चर्चा भी हुई थी और संभवतः इस बात को अघोषित रूप से एक स्वर भी मिल गया था कि भारत अपनी जिस धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता है उसमें कुछ परिवर्तन आना शुरू हो चुका है. अब अमेरिका में अपने हाई प्रोफाइल नेशनल ब्रेकफास्ट प्रेयर में दुनिया भर के देशों में बढ़ती हुई धार्मिक कट्टरता बोलते हुए ओबामा ने भारत के लिए बेहद कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है जिससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर असर पड़ना स्वाभाविक ही है. ओबामा के अनुसार “मिशेल और मैं भारत से लौटे हैं. एक अविश्वसनीय, सुंदर देश जहां ज़बरदस्त विविधता है. लेकिन हाल के वर्षों में वहां सभी धर्म के लोगों पर एक दूसरे के हमले बढ़े हैं, ऐसी असहिष्णुता गांधीजी को भी दहला देती, जिन्होंने भारत को आज़ाद कराने में योगदान दिया था.”
                                             यह उनकी बेहद निजी राय हो सकती थी यदि वे इसे किसी और मंच पर कहते पर दुनिया भर के धार्मिक कट्टरपंथियों के हमलों के ज़िक्र में यदि भारत का इस तरह से समावेश होने लगेगा तो आने वाले समय में क्या हम भी पाकिस्तान जैसे देशों के श्रेणी में नहीं पहुँच जायेंगें और जिस प्रचंड बहुमत के साथ पीएम मोदी देश के विकास के सपने देख रहे हैं क्या उनको पूरा करने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर से मिलने वाला सहयोग भी कम नहीं हो सकता है ? ओबामा के दस दिनों के अंदर ही इस तरह से दो बार भारत में बढ़ती हुई धार्मिक असहिष्णुता का ज़िक्र किसी भी स्तर पर देश के लिए सही नहीं कहा जा सकता है क्योंकि आज पश्चिमी देश अमेरिका के साथ उस स्तर के संबंधों में बंधे हुए हैं जहाँ से उनको केवल अमेरिका के स्वर ही सुनाई देते हैं. आज तेज़ी से हर स्थान पर आगे बढ़ते हुए वैश्विक मीडिया में भारत की इस तरह की हर बात पर चर्चा होती है और यदि मामला हमारे स्तर से किसी भी तरह की धार्मिक असहिष्णुता से जुड़ा हुआ हो तो भारत विरोधियों को देश, सरकार और सत्ता सँभालने वाले दलों पर हमले करने का अवसर मिल जाता है.
                                           ओबामा ने भारत की स्थिति को स्पष्ट करते हुए जिस तरह से गांधी जी का उद्धरण दिया उससे भी यह पता चलता है कि वे भारत के उस मर्म पर चोट करना चाहते हैं जहाँ पर हमें कुछ भी सुनना अच्छा नहीं लगता है ? देश, समाज और धर्म के बेहतर समन्वय के साथ भारत आज तक बहुत आगे बढ़ने में सफल रहा है तो उसके पीछे गांधी जी का दर्शन और उनके साथ काम करने वाले उन नेताओं की सोच रही है जो देश के सामने धार्मिक मसलों को अधिक महत्व नहीं दिया करते थे. आज के समय में भाजपा सरकार चला रहे पीएम मोदी के गांधी अनुराग के बाद भी गोडसे की मूर्तियां लगाने वाले और धार्मिक आधार देश में विभाजन को गहरा करने वाले भी पूरी तरह से सक्रिय हैं. यदि पीएम को अपने सपनों को धरातल पर उतारना है तो उसके लिये उन्हें भी इस तरह की गतिविधियों पर कड़े अंकुश के बारे में सोचना ही होगा क्योंकि व्यापार के लिए भारत आने वाले लोग उस स्थिति में कोई बड़ा निवेश करने से कतराने ही वाले हैं जिसमें भारत भी धार्मिक आधार पर बहुत बंटा हुआ दिखाई देता हो ? धार्मिक स्वतंत्रता को पल भर में धार्मिक असहिष्णुता में बदल देने वाली उस अदृश्य सीमा को अब मज़बूत करने और लोगों को उनकी हदों में रखने की ज़िम्मेदारी अब खुद पीएम पर ही आ गयी है.        
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