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शुक्रवार, 13 मार्च 2015

विधि आयोग और चुनाव सुधार

                                                                                           देश में चुनाव आयोग के हाथों में चुनाव को और भी अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बनाने के साथ अन्य समस्याओं पर जिस तरह से विधि आयोग ने सुझाव दिए हैं यदि उन पर अमल किया गया तो आने वाले समय में आम जनता के लिए चुनाव और भी अधिक सरल हो जाने वाले हैं. सबसे महत्वपूर्ण सुझाव निर्दलीयों को चुनाव लड़ने से रोकने के बारे में है क्योंकि जब तक केवल किसी व्यक्ति विशेष के वोटों को ख़राब करने की नेताओं की नियति पर पूरी तरह से रोक नहीं लगायी जा सकेगी तब तक चुनावों की पवित्रता संदेह से पर नहीं हो पायेगी. आज कई स्थानों पर सिर्फ किसी को हराने के लिए उसकी जाति, धर्म और समान नाम के लोगों को विरोधियों द्वारा चुनाव में उतार दिया जाता है जिसके बाद वोटों के बंटने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और कई बार इस सबसे महत्वपूर्ण लोग चुनाव हार भी जाया करते हैं. हालाँकि इस तरह से चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों के लिए जिस तरह से प्रक्रिया कठोर की जा सकती है वह किसी भी व्यक्ति के चुनाव लड़ने के अधिकार की रक्षा करते हुए अनावश्यक उम्मीदवारों की भीड़ को काम करने का काम करने वाली है. चुनाव आयोग के पास पंजीकरण कराने के बाद कोई भी चुनाव लड़ सकता है ज़ाहिर है कि इस तरह से केवल गंभीर लोग ही चुनाव के लिए आगे आयेंगें और अन्य लोग स्वतः ही मैदान से हट जायेंगें.
                                 दूसरे महत्वपूर्ण सुझाव की आज बहुत ही आवश्यकता है क्योंकि आज कई नेता कई जगहों से चुनाव में खड़े हो जाते हैं और जीतने के बाद वे एक जगह से त्यागपत्र दे देते हैं जिससे दुबारा चुनाव करने की व्यवस्था करनी पड़ जाती है चूंकि उप चुनाव जल्दी ही करने पड़ते हैं तो उस स्थिति में इस खर्चे से बचने के लिए दो जगहों से चुनाव लड़ने पर पूरी तरह से रोक लगाने की बात कही गयी है पर इसके लिए नेता आसानी से राज़ी नहीं होने वाले हैं क्योंकि कई बार हार की संभावनाओं या फिर अपनी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाये रखने के लिए भी बड़े नेता दो जगहों से चुनाव लड़ा करते हैं. दोबारा चुनाव के खर्चे को बचाने के लिए एक काम और भी किया जा सकता है कि दूसरे स्थान पर आने वाले व्यक्ति को यदि कुल पड़े वोटों या जीतने वाले व्यक्ति के वोटों के आधे से अधिक वोट मिलें तो उपचुनाव की जगह उसे विजयी घोषित कर दिया जाना चाहिए और यदि दूसरे स्थान पर आने वाले व्यक्ति को बहुत काम वोट मिले हों तो जीतने वाले व्यक्ति की पार्टी को यह अधिकार दे दिया जाना चाहिए कि वह उसके स्थान पर किसे नामित करना चाहती है जो सदन में पार्टी का प्रतिनिधित्व कर सके.
                          देश में जाति, धर्म, क्षेत्र और अन्य तरह के बंधनों से मुक्त चुनाव कराने के लिए चुनाव केवल पार्टी सिंबल पर भी लड़ने के बारे में सोचा जा सकता है क्योंकि यदि निर्दलीय मैदान में नहीं होंगें तो चुनावों को पार्टी के स्तर पर लड़ने में कोई दिक्कत भी नहीं होने वाली है. जिस स्थान से जिस पार्टी को सर्वाधिक वोट मिलें वहां से पार्टी द्वारा नामित व्यक्ति को सदन में भेजने के लिए नामित किया जा सकता है. देखने में यह प्रक्रिया पेचीदा लग सकती है पर देश की राजनीति में जाति, समाज, धर्म, भाषा आदि के पचड़ों से दूर होकर सभी नेता अपने दल विशेष के लिए वोट मांगते नज़र आने वाले हैं जिससे समाज में समरसता बढ़ सकती है और जिस तरह का विद्वेष चुनाव से पूर्व और पश्चात दिखाई दे जाता है वह भी स्वतः ही कम हो जायेगा क्योंकि किसी भी नेता को यह पता ही नहीं चल पायेगा कि उसके यहाँ से चुनाव में किसे नामित किया गया है. चुनाव आयोग के पास इस तरह की पूरी सूची भी पार्टियों द्वारा चुनाव से पहले ही जमा की जा सकती है जिसमें जीतने पर किस व्यक्ति को प्रमाणपत्र दिया जायेगा या फिर कौन से व्यक्ति को नामित किया जायेगा. यदि इस तरह का आमूल चूल परिवर्तन किया जा सके तो चुनाव के कारण फैलने वाले विद्वेष को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है और चुनावों को समस्या नहीं बल्कि समाधान के तौर पर भी देखा जा सकता है.  
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