मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 16 मार्च 2015

बेमौसम बरसात- सरकार और किसान

                                                         आंकड़ों के अनुसार १९६७ के बाद सबसे अधिक वर्षा देखने वाला मार्च महीना पूरे देश के खाद्यान्न उत्पादन पर गंभीर असर डालने की तरफ बढ़ गया है क्योंकि जिस तरह से अभी तक पश्चिमी विक्षोभ के चलते मार्च महीने में ही चार बार तेज़ बारिश का सामना किसानों को करना पड़ा है वह देश की आर्थिक प्रगति पर भी बुरा असर डालने वाला साबित होने वाला है. एक तरफ जहाँ इससे लगभग तैयार होने की कगार पर पहुंची गेंहूँ की फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है वहीं रोज़मर्रा की सब्ज़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति भी इससे बुरी तरह से प्रभावित हो चुकी है. आज भी मौसम की इस तरह की बेरुखी से किसान और सरकार के पास करने और बचाने एक लिए बहुत कुछ नहीं होता है पर अब इस नुकसान से किसानों को होने वाले नुकसान से किस तरह से निपटा जाये यह महत्वपूर्ण प्रश्न बन चुका है क्योंकि मार्च का महीना होने के चलते अधिकांश सरकारी अधिकारी पूरे वित्तीय वर्ष को समेट्ने में लगे रहते हैं और साथ ही अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए विभिन्न तरह की वसूली पर भी जोर रहा करता है.
                                   किसानों को सही मदद पहुँचाने के लिए ज़िले स्तर पर कृषि विभाग और राजस्व विभाग द्वारा समन्वय कर अपने क्षेत्रों में नुकसान का सही आंकलन करने के बारे में विस्तृत कार्ययोजना पर विचार करना चाहिए और इसके साथ ही किसानों के लिए कुछ राहत के बारे में भी सोचना चाहिए क्योंकि राज्य और केंद्र सरकारों की तरफ से जो भी मदद दी जाती है वह कहीं न कहीं से ज़िले स्तर के इन अधिकारियों और विभागों के दम पर ही होती है जिसे अधिकांश बार बड़ी ही लापरवाही के साथ तैयार किया जाता है. नुकसान के आंकलन पर ही केंद्रीय सहायता भी निर्भर किया करती है पर ऐसी विपरीत परिस्थिति में किसी भी किसान के हो चुके नुकसान की भरपाई कोई भी नहीं कर सकता है. सरकार की तरफ से किसानों की फसलों के सामूहिक बीमे के बारे में भी गहन योजना के बारे में विचार किये जाने का समय अब आ चुका है क्योंकि बीमा अब सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में नए आयाम छूने की तरफ बढ़ने ही वाला है तो इस स्थिति का दोनों ही पक्षों को लाभ उठाना चाहिए जिससे नुकसान की कुछ क्षति पूर्ति की जा सके.
                                     देश के किसान पहले ही बहुत विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे हैं और इस तरह के प्राकृतिक नुकसान से पूरे देश की आर्थिक प्रगति पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है जिसे सुधारने के लिए आज केंद्र सरकार राज्यों के साथ मिलकर जुटी हुई है. भारत की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए अब मौसम पर सटीक भविष्यवाणी करना संभव हो पाया है पर आज भी खेतों में तैयार खड़ी फसलों पर कुछ व्यवस्था नहीं बनायीं जा सकी है जिससे किसानों को भले ही लाभ न दिया जा सके पर उनकी लागत को पूरा करने की दिशा में सोचा जा सके. प्राकृतिक आपदाओं से खेती को बचाया नहीं जा सकता है पर किसानों के लिए सही योजनाओं के माध्यम से उनके घाटे को कम करने के बारे में सोचा जा सकता है. आज जो तंत्र राज्यों में काम कर रहा है वह पूरी तरह से गला हुआ है क्योंकि भारी भरकम विभागों के पास बेहतर संसाधन दिए जाने के बाद भी उनकी तरफ से काम को सही तरीके से नहीं किया जा रहा है. इस तरह की मौसमी मार से ज़िले स्तर के तंत्र को स्वतः ही सक्रिय होने के बारे में तैयार किया जाना चाहिए जिससे वह राज्यों की राजधानियों या केंद्र से निर्देशों को प्राप्त करने के स्थान पर स्वयं ही आगे बढ़कर काम करने के लिए तैयार हो सके.      
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें