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रविवार, 7 जून 2015

किसानों को सब्सिडी

                                            आज देश जब प्रगति के आयामों पर आगे बढ़ता ही जा रहा है तो उस स्थिति में किसानों के लिए बनायीं जाने वाली किसी भी योजना में किसी भी स्तर पर होने वाली देरी से जहाँ समस्याएं और भी गहराती जा रही हैं वहीं पिछले कई वर्षों से किसानों को कालाबाज़ारी से मुक्ति दिलवाने के लिए खाद और डीज़ल पर डायरेक्ट सब्सिडी दिए जाने के कई कार्यक्रमों पर भी सही दिशा में प्रगति नहीं हो पा रही है. इस पूरे मामले में अभी तक केंद्र सरकार के प्रयास इसलिए भी सफल नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि यह मामले केंद्र से अधिक राज्यों की कोशिशों पर ही निर्भर कर रहे है तथा केंद्र के पास केवल नीतियां बनाने के अलावा कुछ भी नहीं है. राज्यों की तरफ से इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए आवश्यक कार्यवाही नहीं की जा रही है जिससे भी केंद्र के चाहने के बाद भी अभी यह सब केवल कागज़ों में ही सिमटा हुआ सा लगता है और आज भी किसानों को सही तरह से सब्सिडी का लाभ देने के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं बन पायी है. पहले से ही परेशान किसानों के लिए जब तक केंद्र और राज्य मिलकर काम नहीं करेंगें तब तक खेतों और किसानों को सही सहायता नहीं मिलने वाली है.
                     आज जब अधिकांश राज्यों में राजग की सरकार है तो इस स्थिति को सुधारने के लिए खुद पीएम को ही प्रयास करने की आवश्यकता दिखाई देने लगी है क्योंकि संभवतः राज्यों को यह योजना समझ ही नहीं आ रही है या फिर राज्यों के स्तर पर उपेक्षा करते हुए इस योजना को समाप्त करने की कोई ऐसी योजना भी बनायीं जा रही है जिससे केंद्र की यह महवपूर्ण योजना अपने आप ही दम तोड़ दे ? आज देश में संप्रग सरकार द्वारा शुरू की गयी डायरेक्ट कैश बेनिफिट की योजना के माध्यम से बहुत कुछ सुधारने की कवायद चल रही है क्योंकि यह एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें केंद्र द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के हर तरह के दुरूपयोग को रोकने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किये जाने हैं. इस तरह की किसी भी योजना में सबसे बड़ी बात यही रहती है कि भ्रष्टाचारियों के पास करने के लिए कुछ शेष नहीं रह जाता है और सरकारी धन और संसाधनों के हर तरह के दुरूपयोग पर काफी हद तक नियंत्रण लग जाता है आज भी देश के कमज़ोर वर्गों तक सब्सिडी पहुंचाए जाने की कवायद को सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका है और यह केंद्र के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने भी आ रहा है.
                   देश की बड़ी आबादी वाले राज्यों यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि में इस योजना के लिए जिला स्तर पर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है केंद्र के प्रयासों से जहाँ काफी बड़ी संख्या में जन-धन खाते खुल चुके हैं वहीं अब किसानों के खेतों के ब्योरे को बैंकों से जोड़ने और उनकी आधार संख्या को तेज़ी से बनाये जाने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक पूरी तरह से हर स्तर पर सही पहचान को नहीं नहीं अपनाया जायेगा तब तक डीबीटी के दुरूपयोग की भी संभावनाएं बनी रहने वाली हैं. अच्छा हो कि इस काम को करने के लिए राज्यों को कुछ प्रोत्साहन भी दिया और खराब काम करने वाले राज्यों को दण्डित करने का प्रयास भी होना चाहिए जिससे राज्यों को इस मूलभूत ढांचे को सुधारने के लिए दबाव भी महसूस हो सके. यदि राजग के बाहर के राजनैतिक दल इस मामले में सही दिशा में सहयोग नहीं कर रहे हैं तो केंद्रीय कृषि विभाग द्वारा यह आंकड़े भी सार्वजनिक रूप से जारी किये जाने चाहिए जिनमें राज्यों द्वारा इस कार्य के लिए किये गए प्रयासों को जनता के सामने लाया जाये तथा अन्य दलों के किसी भी तरह के दुष्प्रचार के बारे में भी जनता को सही स्थिति स्पष्ट करने में मदद मिल सके. अब महत्वपूर्ण परियोजनाओं और प्रयासों में राजनैतिक दुरूपयोग को रोकने के लिए हर स्तर पर प्रयास आवश्यक हो चुके हैं जागरूक जनता के सामने इन मुद्दों को भी उठाया जाना चाहिए जिससे जागरूक तथा काम ना करने वाली राज्य सरकारों के काम के बारे में जनता जान सके.        
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