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गुरुवार, 6 अगस्त 2015

कश्मीर में आतंक का बदलता स्वरुप

                                                   लम्बे समय से जम्मू कश्मीर में पाक समर्थित आतंकियों द्वारा लगातार अपनी हरकतों के माध्यम से जिस तरह से अशांति फ़ैलाने की कोशिशें की जाती रही हैं अब उस परिस्थिति के बीच ही आतंक का एक नया चेहरा भी सामने आना शुरू हो चुका है. अभी तक आतंकी कश्मीर क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों का लाभ उठाने के साथ अपनी घुसपैठ को बनाये रखने के लिए पाक सेना और रेंजर्स का सहारा लिया करते हैं अब उनकी रणनीति में परिवर्तन दिखाई देने लगा है क्योंकि एलओसी पर कड़े उपाय करने के बाद पाक के लिए घुसपैठ को जारी रख पाना उतना आसान भी नहीं रह गया है जितना कभी हुआ करता था इसलिए ही वह इस मौसम में हर वर्ष ही सीमा पर अकारण गोलीबारी करते हुए अातंकियों को सीमा पर भेजने की कोशिशें भी जम्मू क्षेत्र में अधिक करने लगा है. वार्षिक अमरनाथ यात्रा के दौरान सदैव ही कुछ सनसनी फैलाकर पाक की यही कोशिश होती है कि इसके माध्यम से वह आम कश्मीरियों के लिए साल भर की आमदनी पर वह कुछ रोक लगाने में सफल हो सके फिर इन बेकार और परेशान हुए लोगों को वह आसानी से इस्लाम के नाम पर अपने आतंकी जाल में उलझाने में सफल हो सके.
                           उधमपुर क्षेत्र में जिस तरह से बीएसएफ की बस पर हमला करने के बाद जंगलों में दो लोगों का अपहरण कर ले जाने वाले नावेद को ग्रामीणों की बहादुरी के बाद पकड़ा गया है वह पाकिस्तान के आतंकी खेल का खुलासा करने के लिए अपने आप में बहुत ही बड़ा सबूत है पर दुनिया में आतंक को जिस तरह से दो चश्मों से देखा जाता है उसके बाद अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ चीन इस बात को किस तरह से स्वीकार करेंगें अब यही देखने का विषय है. अभी तक जिस भी स्थान पर आतंकी हमले हुए उनमें केवल कसाब ही ज़िंदा पकड़ा गया है पर नावेद को पकडे जाने से पाक पर भारत में आतंक फ़ैलाने की पुष्टि भी होती है क्योंकि दो दिन पहले ही पाकिस्तानी एजेंसी के पूर्व अधिकारी ने २६/११ के लिए पाक के प्रयासों का खुलासा भी किया था. ऐसी स्थिति में क्या अब नावेद को नए सिरे से त्वरित कार्यवाही के द्वारा सजा दिए जाने के बारे में नहीं सोचा जाना चाहिए क्योंकि उसका गुनाह सबके सामने है फिर अब यह सही समय है कि किसी भी आतंकी घटना में शामिल रहे किसी भी व्यक्ति को उसके कारनामों की सजा देने के लिए सरकार नए सिरे से सोचना शुरू करे. यह अपने आप में अकेला आतंकी नहीं है क्योंकि इसके और भी साथी घाटी या देश के अन्य हिस्से में आतंक फ़ैलाने का काम करने के लिए घुसपैठ कर चुके हैं.
                       भारत सरकार के सामने अब कुछ ही विकल्प शेष रह जाते हैं क्योंकि जिस तरह से इसी अगस्त माह में दोनों देशों के एनएसए की दिल्ली में बैठक होने जा रही है तो आज की बदली हुई परिस्थिति में क्या पाक अपनी तरफ से इस बैठक में आना भी चाहेगा क्योंकि इस तरह के अप्रत्याशित सवालों के बारे में सीधे आमने सामने जवाब दे पाना अब पाक एक बूते से बाहर ही होता दिख रहा है और वैसे भी पाक के नेतृत्व में इतना साहस भी नहीं है कि वह भारत के साथ अब खुले तौर पर बात कर सके. एक सम्भावना यह भी है कि पाक इस बैठक में शामिल हो जाये और हमेशा की तरह ही भारत के आरोपों को सिरे से नकारने का काम करने लगे जिससे वार्ता और बातचीत के साथ सम्बन्ध सुधारने की कोई भी कोशिश पूरी तरह से विफल ही होने वाली है. पाक ने जिस तरह से जम्मू को सेना और आतंकियों की प्राथमिकताओं में ले लिया है उसे देखते हुए अभी सितम्बर तक सीमा पर ऐसा ही माहौल बने रहने की पूरी संभावनाएं भी हैं. बातचीत शुरू करने का दबाव अब मोदी सरकार को कड़े कदम उठाते हुए पाक पर डालने की तरफ बढ़ना चाहिए क्योंकि पाक से बात करने का कोई मतलब नहीं बनता है साथ ही पाक के साथ प्रस्तावित किसी भी बैठक से दूर रहकर भारत को अब कड़े सन्देश देने की तरफ बढ़ना चाहिए. देश में सरकार बदलने के साथ जो लोग मोदी से पाक के प्रति कठोर रवैया अपनाये जाने की आस लगाये बैठे थे आज वे ही सबसे अधिक निराश नज़र आ रहे हैं इसलिए सरकार को बातचीत के प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने के बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता भी है.   
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