मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

भाजपा और भड़काऊ बयान

                                                                 केंद्र में पूर्ण बहुमत से पहली बार सरकार बनाने और पार्टी व सरकार पर मज़बूत पकड़ होने के लम्बे चौड़े दावों के बाद भी जिस तरह से भाजपा के दूसरे व तीसरे दर्ज़े के नेताओं की तरफ से अनावश्यक बयानबाज़ी करने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह आज भी कहीं से कम होता नज़र नहीं आ रहा है जबकि पिछले वर्ष ही लव जिहाद जैसे मुद्दे पर भाजपा और उसके सहयोगी हिंदूवादी संगठनों के प्रयासों से नाराज़ माने जा रहे पीएम मोदी ने अपनी राय से पार्टी नेताओं और संघ को भी स्पष्ट कर दिया था. उस तरह की चेतावनी और अन्य बातों पर पार्टी और संघ की तरफ से संभवतः अनमने ढंग से ही कुछ कहा गया होगा तभी इन नेताओं के बड़बोलेपन पर किसी तरह की रोक नहीं लगायी जा सकी है और इसका दबाव आज भारत सरकार को विदेशों और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अधिक महसूस हो रहा है जिसके बाद ही मोदी के निर्देश पर इन नेताओं को पार्टी अध्यक्ष के सामने पेश किया जा रहा है.
                   दादरी कांड और दक्षिण भारत में लगातार संघ की मानसिकता का विरोध करने वाले भाजपा नेता और अन्य संगठनों के लोगों द्वारा जिस तरह से लगातार लेखकों/ साहित्यकारों को अपने निशाने पर ले लिया गया है उसके बाद से मोदी सरकार के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पीएम के चुप रहने का मुद्दा भी उठने लगा है. सरकार में आने के बाद से ही जिस तरह से मोदी ने खुद केवल एक तरफ़ा संपर्क करने के मार्ग पर चलना शुरू किया है उससे भी उनकी लोकतंत्र में आस्था और देश के सामने लगातार समस्याएं खडी करने वाले विवादों पर अपने निर्देश देने की प्रतिबद्धता भी कटघरे में दिखाई देने लगती है. इस परिस्थिति में मोदी सरकार की लगातार कट्टरपंथी तत्वों के कारनामों पर चुप रहने या उन्हें राज्यों का मामला बताने से भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस बात का भरोसा नहीं होता है कि सरकार वास्तव में इन मुद्दों पर गंभीर भी है ? मोदी सरकार को अब यह दबाव कुछ इतना महसूस होने लगा है कि वह मीडिया के ज़रिये यह सन्देश देना चाहती हैं कि उसे भी इन कट्टरपंथियों की बातें रास नहीं आ रही हैं.
                  बिहार चुनावों के मद्देनज़र जिस तरह से गोहत्या मामले को सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ाने और उसका राजनैतिक लाभ उठाने की कोशिश शुरू की गयी थी वह पूरी तरफ से फ्लॉप होने के बाद सरकार को यह समझ में आया कि इस तरह के मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीय दुष्परिणाम भी अधिक ही होते हैं तो सरकार को पीएम मोदी और सरकार की छवि की चिंताएं समझ में आने लगीं जबकि इस बात का अंदेशा देश में एक वर्ग शुरू से ही जता रहा था तब संघ, भाजपा और मोदी सरकार को केवल यही लगता था कि यह भी सरकार का विरोध करने का एक तरीका मात्र है. आज जब अंतर्राष्ट्रीय मंचों से भारत सरकार से ये सवाल पूछे जाने लगे हैं तो भाजपा को समझ में आने लगा है कि इस तरह इन तत्वों को खुलेआम छोड़ना मोदी का हर कथित सफल विदेश दौरे के परिणामों को शून्य की तरफ ही ले जाने का काम करेगा. मेक इन इंडिया का नारा लगाना एक बात है और उसके लिए निवेश आये वैसा माहौल बनाये रखना बिलकुल दूसरी बात है तो यह देश के लिए अच्छा ही है कि मोदी शाह की जोड़ी ने इस दिशा में सोचना शुरू का दिया है.

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