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शुक्रवार, 6 मई 2016

आरोप, जाँच और वास्तविकता

                                                           २०१४ के चुनावों में घोटालों की श्रेणी में शामिल रहे बड़े कामनवेल्थ घोटाले के एक और मामले में सीबीआई की अदालत ने क्लोज़र रिपोर्ट लगाने के लिए अनुमति प्रदान कर दी है जिससे यह अवश्य ही पता चलता है कि देश में नेता, अधिकारी, ठेकेदार तो मनमानी करते ही हैं साथ ही पुलिस और अन्य जाँच एजेंसियां भी मीडिया ट्रायल के चक्कर में फंसकर बिना सबूतों पर विचार किये कोई भी मामला दर्ज़ कर लेते हैं. देश की प्रतिष्ठा पर दाग लगाने वाले बहुत सारे मामलों में से एक इस मामले में भी जिस तरह से सीबीआई को कुछ नहीं मिला और आज वह कोर्ट से यह अनुमति मांगती है कि यह मामला सबूत न मिलने के कारण बंद कर दिया जाना चाहिए तो इस तरह के मामलों के बारे में क्या देश को स्पष्ट नीति बनाने की आवश्यकता नहीं है ? एक तरफ जहाँ जजों की सीमित संख्या के चलते बहुत सारे मुक़दमों की सुनवाई समय से नहीं हो पा रही है वहीं इस तरह के बिना सबूतों वाले मुक़दमों पर कोर्ट्स और जजों का समय केवल राजनैतिक कारणों से ही क्यों बर्बाद किया जा रहा है यह भी सोचने का समय आ गया है.
                                            देश में भ्रष्टाचार जिस स्तर पर पहुंचा हुआ है उसके बाद किसी भी सरकार के लिए इसे एकदम से समाप्त कर पाना बहुत ही कठिन है पर कुछ मामलों में जाँच अभियोजन में तेज़ी लाकर भ्रष्टाचारियों को यह सन्देश तो दिया ही जा सकता है कि अब वे पहले की तरह सुरक्षित नहीं हैं और कानून उनके मामलों को तेज़ी से निपटाने की स्थिति में पहुँच गया है. आज यदि भ्रष्टाचारियों के हौसले बुलंद हैं तो उसके पीछे केवल यही सबसे बड़ा कारण है कि वे जानते हैं कि इस तरह के मामलों में सबूत मिलना आसान नहीं होता है और वे अपने पदों पर रहते हुए भी भ्रष्टाचार के किसी मामले में कानून से भी पूरी तरह से सुरक्षित रह सकते हैं. इस दिशा में किसी भी प्रयास से पहले देश में एक भ्रष्टता का पैमाना भी बनाया जाना चाहिए जिसके लिए आम जनता, नेता, अधिकारी सभी को अपनी राय देने का अधिकार हो जिससे यह पता चल सके कि देश में कौन सा राज्य कितना भ्रष्ट है या फिर कौन सा विभाग सबसे अधिक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है. ऐसे क़दमों से जहाँ विभागों पर सामाजिक दबाव बनाया जा सकता है वहीं सरकार के सामने वास्तविकता आने की स्थिति में देश में भ्रष्टाचार की सही स्थिति का अंदाजा भी हो सकता है.
                                बड़े स्तर पर काम होने की दशा में इस तरह का भ्रष्टाचार आम तौर पर देखा जाता है आज सभी जानते हैं कि सांसद/ विधायक निधि तक से काम करवाने के लिए आम जनता को किस तरह से भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है जबकि देश की प्रगति के लिए भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए संसद में कसमें खाने वाले सांसद भी यह वास्तविकता जानते हैं. किसी भी परिस्थिति में आखिर क्यों इस धन की बंदरबांट पर किसी नेता की नज़र क्यों नहीं जाती है आखिर वे कौन से कारण है जिनके चलते सौ दो सौ करोड़ रुपयों का भ्रष्टाचार तो बहुत बड़ा हो जाता है पर सांसद विधायक निधि के माध्यम से होने वाला भ्रष्टाचार कितना बड़ा होता है यह देखने की किसी के पास फुर्सत भी नहीं है. भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों को त्वरित कोर्टों के माध्यम से निपटा जाना चाहिए और इसमें किसी भी तरह की राजनीति को दूर रखने का प्रयास भी किया जाना चाहिए क्योंकि जब तक दोषियों के खिलाफ सही तरह से कार्यवाही नहीं की जाएगी तब तक भ्रष्टाचार से निपटने के संकल्प केवल विधायिका के सदनों तक ही सीमित रहेंगे और कुछ लोग अपनी राजनीति को सँभालने के लिए इस तरह से भ्रष्टाचार को निशाने पर लेकर गलत लोगों में ही देश को उलझाकर रखने का काम करते रहेंगें.  
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