मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 22 अगस्त 2016

बाढ़ के खतरे और तैयारियां

                                                                  देश की भौगोलिक स्थिति के चलते कई बार विभिन्न हिस्सों में हमें बाढ़ और सूखे की दोहरी चुनौतियों से एक साथ ही निपटना पड़ता है क्योंकि कई बार किसी हिस्से में मानसून के सक्रिय और किसी हिस्से में सुस्त होने से आम जनजीवन पर उसका बुरा प्रभाव दिखाई देता है. पिछले कई वर्षों से देश के उन हिस्सों में अति वृष्टि दिखाई देने लगी है जहाँ पर सामान्य वर्षा भी नहीं होती थी और सामान्य बरसात वाले क्षेत्रों में वर्षा होने की स्थिति में भी बड़ा परिवर्तन दिखाई दे रहा है. क्या इस तरह की प्राकृतिक आपदा के लिए हमारे देश में व्यापक तैयारियां पहले से की जाती हैं या समस्या में घिर जाने पर तात्कालिक रूप से उसका समाधान निकालने की कोशिशों से ही काम चला कर हम अगले वर्ष फिर से बाढ़ आने का रास्ता देखने लगते हैं. यह किसी एक राज्य या केंद्र सरकार के भरोसे सुलझाई जाने वाली समस्या नहीं है क्योंकि जब तक इसमें आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जाती है तब तक किसी भी परिस्थिति में इससे निपटने की सही व्यवस्था कर पाने में हम पूरी तरह से विफल ही रहने वाले हैं.
                                               देश भर में बढ़ती आबादी और बेहतर रहन सहन के सपने के चलते आज ग्रामीण अंचलों से निकट के बड़े कस्बों और शहरों की तरफ पलायन तेज़ी से बढ़ रहा है जिसके चलते आज इन नए क्षेत्रों में शहर जिस अनियमित तरीके से बढ़ रहे हैं उसका दुष्परिणाम भी आज हमारे सामने है. किसी छोटे से स्थान के लिए विकसित की जाने वाली सड़कों पर आने वाले समय में अनियंत्रित विकास के चलते जितना दबाव बनता है वह लोगों के लिए तेज़ बारिश आदि में गंभीर चुनौतियाँ लेकर आता है. जब लोग अपने खेतों को बेचकर वहां पर आवासीय क्षेत्र बनाने लगते हैं तो उससे बहुत तरह की समस्याएं सामने आती है क्योंकि इन क्षेत्रों से पानी कूड़े आदि के समुचित निस्तारण के बारे में कोई नहीं सोचता है और दुर्भाग्य से यहाँ आकर बसने वाले लोग भी इस तरह के सवाल किसी से पूछते हुए नहीं देखे जाते हैं. इस तरह से किसी शहर या कस्बे में जब बहुत सारी अवैध बस्तियां बसा दी जाती हैं तो उनके लिए सामान्य सुविधाएँ जुटा पाना भी मुश्किल हो जाता है और अधिक बरसात होने पर इस क्षेत्रों में जलभराव और कई बार बाढ़ जैसी स्थिति भी देखी जाती हैं जहाँ हफ़्तों तक पानी रुका रहता है,
                                              प्राकृतिक कारणों पर तो हम रोक नहीं लगा सकते हैं पर विकास के पैमानों पर खरे उतरने वाले विकास पर हमारा समुचित ध्यान तो होना ही चाहिए पहले हर क्षेत्र में बरसाती पानी की निकासी की व्यवस्था भी होती थी और उसके साथ ही नाले और तालाब आदि भी साफ ही रहा करते थे पर अब थोड़े लालच के चलते बिल्डर तालाबों नालों और बरसाती नदियों तक के भूसंग्रहण क्षेत्र को आवासीय बना देते हैं जिससे अति वृष्टि की स्थिति में पानी अपनी पुरानी प्राकृतिक बहाव वाली दिशा में बहता है और इन नए बसे आवासीय क्षेत्रों में तबाही भी मचा देता है. इस मामले में बिल्डर, नगरीय निकाय और जमीन बेचने वाले सभी की मिलीभगत होती है क्योंकि सरकारी कानूनों के बाद भी इस तरह से पूरी पूरी अवैध बस्तियां आखिर कैसे बस जाती हैं कोई भी इस बात पर विचार नहीं करता है. अभी तक जो अनियंत्रित विकास हो चुका है उसमें संभावित सुधारों एक साथ हमें नए बसने वाले क्षेत्रों के लिए कानून का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा तभी आवासीय क्षेत्रों के साथ खेतों आदि को भी बाढ़ की विभीषिका से बचाया जा सकता है वर्ना आज जो स्थिति दिखाई देती है वह आने वाले समय में किसी अतिवृष्टि वाले मौसम में मुम्बई और केदारनाथ त्रासदी से भी कहीं अधिक भयावह हो सकती है.
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