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सोमवार, 21 अप्रैल 2014

गुजरात के विकास पर गुजरातियों की राय

                                        बीबीसी के कैंपस हैंग आउट कार्यक्रम में अहमदाबाद विद्यापीठ के छात्रों ने जिस तरह से गुजरात मॉडल के बारे में अपनी बेबाक राय रखी उसे यही लगता है कि आने वाली पीढ़ी के छात्र छात्राएं यह अच्छे से जानते हैं कि विकास और सर्वांगीण विकास में क्या अंतर होता है ? जिस राज्य में पुलिस में नए भर्ती होने वाले को २४०० रूपये और शिक्षक को ५३०० रूपये मिलते हों तो क्या उस राज्य को विकसित श्रेणी में रखा जा सकता है यह सवाल उन युवाओं की तरफ से आये जिनका काम सामाजिक कार्य विभाग की तरफ से गुजरात के दूर दराज़ के क्षेत्रों तक भी जाकर सामाजिक बदलाव के बारे में अध्ययन करना भी रहा है. देश में आज गुजरात मॉडल की खूब चर्चा हो रही है और यदि इतने वेतन पर गुजरात सरकार काम करवाने में विश्वास करती है तो वहां पर किस तरह का विकास हुआ है और क्या देश में उस मॉडल को लागू करने पर नयी भर्तियों को इस तरह के वेतनमान पर रखने में सफलता मिल सकती है ?
                                     इस कार्यक्रम में गुजरात के एक तरफ़ा विकास की बातें जिस तरह से सामने आयीं उन पर भी विचार किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि औद्योगिक विकास की अवधारणा किसी भी राज्य के विकास में तभी फलीभूत हो सकती है जब उसका समाज के सभी वर्गों पर भी असर दिखाई दे. इस कार्यक्रम में ही कोई जब यह प्रश्न कर देता है कि शहरों के विकास की हवा भी गांवों तक क्यों नहीं पहुंची तो किसी के पास कोई जवाब नहीं होता है और यदि किसी गाँव तक सड़क बन भी गयी तो क्या उस पर कोई बस शहर के लिए चलनी शुरू हुई और वह गांव और शहर को जोड़ने में किसी भी तरह से सफल हो पायी या फिर उसने भी विकास की उस कथित परिभाषा में दो हिस्सों में बांटते हुए गुजरात को और भी दूर ही करने का काम किया है ? इस कार्यक्रम में सबसे बड़ी बात यह थी कि इसमें गुजराती युवा ही भाग ले रहे थे और उनके मन की बात और सवाल सबके सामने आ रहे थे.
                                     यह बिलकुल सही है कि प्राकृतिक रूप से गुजरात का जिस तरह से दोहन किया जा सकता था उसमें मोदी सरकार ने पूरी तरह से सफलता भी अर्जित की है पर देश के अन्य राज्यों की तरह सामाजिक सूचकांक पर क्या आम गुजराती जो औद्योगिक विकास से नहीं जुड़ा हुआ है उस पर इसका कितना असर हुआ यह सोचने कि विषय है. गुजरात के पास नैसर्गिक रूप से समुद्री बढ़त हासिल है जो उसे मध्यपूर्व और खाड़ी देशों तक पहुँच बनाने में मदद करती है जिसका दोहन आदि काल से ही गुजरातियों द्वारा किया जाता रहा है. इस परिप्रेक्ष्य में अब औद्योगिक रूप से विकसित गुजरात में सामाजिक रूप से समग्र विकास की बात करने की तरफ भी सभी को बढ़ना ही होगा क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि औद्योगिक विकास हमारे राज्यों के लोगों के बीच विकास की एक तरफ़ा लहर के रूप में ही न थम जाये ? बेशक गुजरात अपने आप में अनूठा है पर उसकी कहानी को क्या पूरे देश में दोहराया जा सकता है और राज्य सरकार चलाना एक बात है और केंद्र में बैठकर राज्यों के साथ समन्वय करके आगे बढ़ना पूरी तरह से दूसरी बात नहीं है ?        
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